भारतीय संगीत जगत पर एक अमिट छाप छोड़ने वाले प्रसिद्ध पार्श्व गायक मोहम्मद रफ़ी को उनकी पुण्यतिथि पर संगीत प्रेमी उन्हें याद करते है, जो आज ही के दिन 31 जुलाई को होती है। भारत के पंजाब में 1924 में जन्मे रफी की शुरुआत से लेकर संगीत सनसनी बनने तक की उल्लेखनीय यात्रा दृढ़ता और प्रतिभा के सार को पूरी तरह से दर्शाती है।
.पद्मश्री से पुरस्कृत रफ़ी ने गाये 26,000 गाने
मधुर भारतीय गायक मोहम्मद रफी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका संगीत आज भी सदाबहार और लोकप्रिय बना हुआ है, लगभग चार दशकों के करियर के दौरान, पद्म श्री पुरस्कार विजेता रफी ने 26,000 से अधिक गाने गाए।
राष्ट्रीय पुरस्कार से हुए सम्मानित
अपने गायन करियर के दौरान, उन्हें एक राष्ट्रीय पुरस्कार फिल्म हम किसी से कम नहीं के गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा’ के लिए मिला इसके अलावा उन्हें छह फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले। लगभग हर भारतीय भाषा के अलावा, उन्होंने कई अन्य भाषाओं में गाने गाए।
रफ़ी साहब और नौशाद की जोड़ी थी हिट
वैसे तो रफ़ी साहब ने उस ज़माने के सभी मशहूर संगीत नेर्देशकों के साथ काम किया पर उनकी जोड़ी दिग्गज संगीत निर्देशक नौशाद के साथ खूब जमीI इन दोनों ने साथ मिलकर उस दौर की बेहतरीन फिल्मे कीI मदरइंडिया,मुग़ल-ए-आज़म और बैजू बावरा और गंगा जमुना जैसे सुपरहिट फिल्मों की एक लम्बी सूची है जिसमे दोनों ने साथ कियाI इन फिल्मों के गीतों को न केवल उस दौर के फिल्म प्रेमियों ने सराहा बल्कि आज की पीढ़ी से भी इन गीतों को वही स्नेह मिल रहा हैI
रफ़ी साहब का मनपसंद गाना था, ‘ओ दुनिया के रखवाले’
बैजू बावरा फिल्म का गीत ओ दुनिया के रखवाले रफ़ी साहब का मनपसंद गीत था जोकि उन्होंने खुद ही गाया थाI कहते है इस गाने को गाने के दौरान उनकी आवाज फट गयी थी और मुहँ से खून निकला आया थाI किस संजीदगी से उन्होंने गीत को आवाज दी होगीI कहीं भी स्टेज शो करने के दौरान पब्लिक की पहली फरमाइश होती थी ‘ओ दुनिया के रखवाले’I
दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत
मोहम्मद रफी ठीक 38 साल पहले 31 जुलाई 1980 को रात 10:25 बजे 55 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने के बाद स्वर्गीय निवास के लिए चले गए। “आस पास” उस समय उनकी आखिरी फिल्म थी जिस पर वह काम कर रहे थे। सूत्रों के मुताबिक, ‘शाम फिर क्यों उदास है,तू कहीं आस पास है दोस्त’ गाना उनकी मौत से कुछ घंटे पहले रिकॉर्ड किया गया था। यह फिल्म जगत के लिए भारी नुकसान था। जिसकी भरपाई कोई गायक नहीं कर पाया उनका दफन भारत में सबसे बड़े अंतिम संस्कार जुलूसों में से एक था, और सरकार ने श्रद्धांजलि के रूप में दो दिवसीय सार्वजनिक दुःख घोषित किया गया थाI
मौत तो सबको आती है लेकिन रफ़ी साहब जैसे फ़नकार लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहते हैI
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