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एक और जोड़ी जूते

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मैंने सशंकित दृष्टि से उर्वा को देखा फिर जूतों को “मै हजार बार कह चुकी हूँ मम्मा ये मैंने नहीं मँगाए कभी-कभी गलत एड्रेस पर डिलीवरी हो जाती है”I सिलेटी रंग के कैनवस शूज को मेरी बेटी बड़ी हसरत से निहारते हुए बोली I उसे पता था अगर कोई वापस लेने आया तो मम्मा जूते तुरंत वापस कर देंगी I इसलिए बिना ज्यादा कुछ कहे वह स्कूल चली गयी “एक और जोड़ी जूते” चाहिये कई हफ़्तों से उसकी डिमांड थी I

उसकी आँखों की चमक कह रही थी कि, हमने नहीं मँगाए पर चोरी तो नहीं की न I बड़े अच्छे जूते हैं मुझे बहुत पसंद हैं I अगर कोई वापस लेने आये तो आप कह देना की हमारे पास किसी की गलत डिलीवरी नहीं हई I पर मैं उसके सामने गलत उदाहरण नहीं रखना चाहती थी I इस महीने खर्च ज्यादा बढ़ गया था I कहाँ से लाती उसके लिए एक और जोड़ी जूते, जूते वाकई बड़े कीमती लग रहे थे किसी दौलतमन्द माँ – बाप ने अपनी बच्ची के लिए मँगाए होंगे I

जूते की पैकिंग में पता तो घर का ही था  पर नाम किसी ज़ैनब का लिखा था I हमारी सोसाइटी में इस नाम की कोई बच्ची भी न थी I पूरा दिन इसी उधेड़बुन में बीता I बच्ची का मन रखने के लिए वापस भी न करना चाहती थी और रख भी नहीं सकती थी I उर्वा स्कूल से घर आ गयी “ कोई जूते वापस लेने आया” पहला प्रश्न उसके मुहँ से यही निकला  मैंने अनमने ढंग से न कह दिया I

अगले दिन रविवार था मुझे पूरा यकीन था की आज तो कोई न कोई आ जायेगा और यह कह के की पार्सल गलती से आपके घर पहुँच गया है, ले जायेगा I नाश्ता कर के सोफे पर बैठी ही थी की दरवाजे की घंटी बजी I मैंने खिड़की से झाँक कर देखा वही डिलीवरी बॉय था I उर्वा ने निराश आँखों से मेरी ओर देखा, मैंने कहा क्या हुआ दुखी क्यों हो रही हो वापस तो करना ही पड़ेगा न I

 घंटी कई बार बज चुकी थी दरवाजा खोलने को मन ही न करता था I फिर भी मैंने अन्दर से पूछा “कौन” मैंम आपका पार्सल “पार्सल” मैंने चौंक कर दरवाजा खोला डिलीवरी बॉय कागज का एक डिब्बा जल्दी में पकड़ा कर सीढियों से नीचे चला गया I मैंने डिब्बा खोल कर देखा तो ……एक और जोड़ी जूते I

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